phanishwar nath renu| shailendr| teesri kasam |bharat yayavar| rahul raj renu|page-7| फणीश्वर नाथ रेणु | शैलेन्द्र | तीसरी कसम अर्थात मारे गए शैलेन्द्र | भारत यायावर |राहुल राज रेणु |पेज -7
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|| तीसरी कसम अर्थात् मारे गए
शैलेन्द्र || पेज -7
----भारत यायावर
जो जिससे मिला सीखा हमने, गैरों को भी अपनाया हमने
मतलब के लिए अन्धे बनकर रोटी को
नहीं पूजा हमने
अब हम तो क्या सारी दुनिया, सारी दुनिया से कहती है
हम उस देश के वासी हैं जिस देश में
गंगा बहती है !
ऋषिकेश मुखर्जी द्वारा निर्देशित फिल्म ‘आशिक’ (1962) में शैलेन्द्र का यह गीत — ‘‘तुम जो हमारे मीत न होते, गीत ये मेरे गीत न होते !’’ सर्वाधिक लोकप्रिय हुआ और मैं इसे आज
भी गुनगुनाता रहता हूँ ।
‘बरसात’ से लेकर ‘संगम’ तक राज कपूर की सभी फिल्मों में शैलेन्द्र
ने गीत लिखे। राज कपूर की टीम में गीतकार के रूप में शंकर शैलेन्द्र एवं हसरत
जयपुरी, संगीतकार — शंकर एवं जयकिशन, पटकथा लेखक — ख्वाजा अहमद अब्बास, छायाकार — राधू कर्मकार, गायक — मुकेश और मन्ना डे, कला-निर्देशक — एच.आर. अचरेकर आदि महान् प्रतिभाशाली लोग थे। इन
सभी के सामूहिक प्रभाव से राज कपूर का महिमामण्डित एवं लोकप्रिय छवि का निर्माण
हुआ था। पर शैलेन्द्र की प्रतिभा से दूसरे निर्माता-निर्देशक भी प्रभावित थे। विमल
राय ने अपनी कई फिल्मों में उनसे गीत लिखवाए थे। देवानन्द एवं विजयानन्द ने ‘गाइड’
फिल्म में उनसे गीत लिखवाए थे. राज कपूर की फिल्मों से बाहर जाकर अन्य फिल्मों के
लिए जो उन्होंने उल्लेखनीय एवं बेहतरीन गीत लिखे, उनमें से कुछेक की चर्चा करने से अपने को नहीं रोक पा रहा हूँ —
धरती कहे पुकार के
गीत बिछा ले प्यार के
मौसम बीता जाए...
अपनी कहानी छोड़ जा
कुछ तो निसानी छोड़ जा... (दो बीघा
जमीन)
तू प्यार का सागर है
तेरी इक बून्द के प्यासे हम
लौटा जो दिया तुमने
चले जाएँगे जहाँ से हम... (सीमा)
काँटों से खींच के ये आँचल
तोड़ के बन्धन बाँधे पायल
कोई न रोके दिल की उड़ान को
दिल ये चला...आ आ आ आ...
आज फिर जीने की तमन्ना है
आज फिर मरने का इरादा है... (गाइड)
शैलेन्द्र को तीन गीतों के लिए फिल्मफेयर पुरस्कार मिला। ‘यहूदी’
के गीत — ‘ये मेरा दीवानापन है या मोहब्बत का सुरूर’ के लिए 1958 में। ‘अनाड़ी’ के गीत — ‘सब कुछ सीखा हमने ना सीखी होशियारी / सच है
दुनियावालों कि हम हैं अनाड़ी’ के लिए 1959 में एवं 1968 में ‘ब्रह्मचारी’ फिल्म के इस गीत
के लिए — ‘‘तुम गाओ मैं सो जाऊं’’, मृत्योपरान्त।
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