phanishwar nath renu| shailendr| teesri kasam |bharat yayavar| rahul raj renu|page-6| फणीश्वर नाथ रेणु | शैलेन्द्र | तीसरी कसम अर्थात मारे गए शैलेन्द्र | भारत यायावर |राहुल राज रेणु |पेज -6
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|| तीसरी कसम अर्थात् मारे
गए शैलेन्द्र || पेज -6
----भारत यायावर
‘‘ज़िन्दगी
ख़्बाव है
ख़्बाव में झूठ क्या !
और भला सच है क्या !’’
यह गीत अपने ढांचे में नई कविता की तरह है। ‘अनाड़ी’ फिल्म का
शीर्षक-गीत — ‘‘सब कुछ सीखा हमने, ना सीखी होशियारी, सच है दुनिया वालो कि हम हैं अनाड़ी !’’ जब मुकेश की आवाज में
स्वर-बद्ध हुआ तो राज कपूर आधी रात को शैलेन्द्र के घर गए एवं उन्हें जगाकर गले से
लगा लिया और कहा —‘‘शैलेन्द्र ! मेरे दोस्त! गाना सुनकर रहा नहीं गया। क्या गीत
लिखा है?’’ उसी फिल्म में जीवन के अपने
उद्देश्य को स्पष्ट करती शैलेन्द्र की ये पंक्तियां हर संवेदनशील मनुष्य को
प्रभावित कर लेती हैं —
किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार
किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार
किसी के वास्ते हो तेरे दिल में
प्यार
जीना इसी का नाम है !
रिश्ता दिल से दिल के ऐतबार का
ज़िन्दा है हमीं से नाम प्यार का
कि मरके भी किसी को याद आएँगे
किसी के आँसुओं में मुस्कुराएँगे
कहेगा फूल हर कली से बार-बार
किसी को हो न हो, हमें है ऐतबार
जीना इसी का नाम है !
शैलेन्द्र के गीतों में जो आज भी ताज़गी है, उनमें कहीं भी बासीपन की बदबू नहीं। इसका मुख्य कारण है उनका
जीवन-दर्शन, जीवनादर्श और जिजीविषा से भरे हुए
शब्द, जो हर युग में जीवन्त बने रहेंगे। ‘जिस देश में गंगा बहती है’
फिल्म का शीर्षक-गीत अपने देश की महानता, आदर्श और दुर्लभ विशेषता को इन शब्दों के द्वारा अभिव्यक्त करता है
—
हम कल क्या थे, हम आज हैं क्या, इसका ही नहीं अभिमान हमें
जिस राह पे आगे चलना है, है उसकी भी पहचान हमें
अब हम तो क्या सारी दुनिया, सारी दुनिया से कहती है
हम उस देश के वासी हैं, जिस देश में गंगा बहती है !
कुछ लोग जो ज़्यादा जानते हैं, इनसान को कम पहचानते हैं
ये पूरब है, पूरब वाले हर जान की क़ीमत जानते हैं
हिल-मिल के रहो और प्यार करो, इक चीज़ यही तो रहती है
हम उस देश के वासी हैं जिस देश में
गंगा बहती है !
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