Teen maut || rahul raj renu ||तीन मौत || राहुल राज रेणु || part-1

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                                                                 -ःतीन मौतः-                                                                                                        -राहुल राज रेणु    रात का खाना खाने के बाद थोड़ी बहुत खाना बच जाती थी। उस खाने को सुलोचना बाहर बरामदा पर रख जाती थी।    “सुलोचना कटिहार के सबसे धनी लाला का दुलारी बेटी थी। सुलोचना के पिता जी इज्जतदार व्यक्ति थें।उनके घर में तीन ही आदमी का बसेरा रहता.....माँ-पिता जी और सुलोचना।सुलोचना का एक बड़ा भाई बैंगलोर में ईंजीनियर  की पढ़ाई कर रहा है।सुलोचना बी0एस0सी की छात्रा हैं।”   सोमवार की रात को सुलोचना खाना खाने के बाद बाहर बरामदे पर खाना कुत्तों को खाने रख गईं।सोने के कुछ देर बाद अचानक  उनको याद आई कि अँगुठी भी वह बाहर ही छोड़ गई हैं।उलटे पाँव वह वापस बाहर आने लगी ,उसने देखा कि एक आदमी काॅफी बुरी तरह से फटी-चिटी गंदी कपड़ा पहना हुआ ।सर की बड़ी-बड़ी भद्दी बाल,दाड़ी भी बड़ी पुरा गंदा दिख रहा था।सुलोचना काॅफी डर गई...वह व्यक्ति भी ठंड से सिकुड़ रहा था। ठंड से उनके हाथों से वह जुठा खाना खाया नही जा रहा था।सुलोचना भिखारी स

फणीश्वर नाथ रेणु की अनसुनी बातें | Phanishwar Nath Renu Ki Ansuni Baten







                                 
राहुल राज रेणु 
                     फणीश्वरनाथ रेणु

                                                                                                          

  हिंदी कथा-साहित्य शिल्पकार के रूप में महत्वपूर्णं रचनाओं  के निर्मांता आँचलिक साहित्यकार फणीश्वर  नाथ रेणु जी का जन्म, बिहार के मैंला आँचल की धरती औराही हिंगना गाँव जो अररिया जिले , में 4 मार्च 1921 को हुआ।

    बचपन का नाम फनेसरा ,दादी ने उनका नाम ऋणुआॅ रखा ,वो इसलिए उनके जन्म के समय कर्ज लेना पड़ा।बाद में इसी नाम को नागार्जूण साहब ने इनके  नाम  का टाईटल दे दियें, रेणु ।

    फणीष्वर नाथ रेणु के पिता जी  शिलानाथ मंडल माता पाणो देवी। रेणु जी अपने माता-पिता केा अपने ह्रदय से कभी अलग नही कियें। लेखन कार्य वे अपने पिता जी के समाधी के बगल में बैठ कर अनवरत घण्टों लिखा करते थें।उसे  लिखते समय किसी तरह की टोका-चाली पसन्द नही था। लेकिन वो काॅफी मज़ाकियाॅ इन्सान थें। मैला आँचल के प्रकाशन  होने के बाद उन्होंने सबसे पहले अपने पिता जी की समाधी पर उपन्यास रखकर 24 घंटे की कृतन-पुजा किये ,उस दिन वो अपने पिता जी की कमी को महसुस कर फूट-फूट कर बहुत देर तक रोयें।

      रेणु जी की  तीन शादीयाँ हुईं थी। उनकी तीनों शादी परिस्थितिवश  हुईं।पहली पत्नी रेखा  रेणु का जन्म कटिहार जिले के बलूआ ग्राम में हुआ। उनसे एक बेटी हुई ,कविता राय ।रेखा रेणु , बेटी कविता को जन्म देने के बाद,पक्षघात से पिड़ित हो कर उनकी मृत्यू हो गईं।कविता राय की शादी रेणु जी ने कटिहार जिले के महमदिया गाँव के अत्यंत गरीब स्व0 पृथ्वी चन्द्र मंडल से करवाया। रेणु जी के देहान्त के बाद  कवीता राय अभि तक रेणु परिवार से पहचान की मोहताज है। रेणु जी के बेटी होने के बावजुद भी  गरीबी और उपेक्षा की शिकार से ग्रसित हैं। दुसरी पत्नी पद्मा रेणु का जन्म कटिहार जिले के महमदिया ग्राम में हुआ।जिनसे तीन पुत्र ,तीन पुत्रीयां हुई।बड़ा बेटा पद्म पराग राय वेणु फारबीस विधान सभा क्षेत्र से निर्वतमान विधायक है।रेणु जी का कटिहार जिले से काॅफी सम्बन्घ रहने के बावजूद भी उनकी प्रतीमा कटिहार जिले के किसी क्षेत्र में  नही है। तीसरी पत्नी लतिका रेणु  से रेणु जी की  मुलाकात, 1942 के क्रांती में जब रेणु जी को घोड़े में बांधकर खिंचते हुए, अंग्रेजों ने पूर्णियाॅ लेकर आया । जिस कारण रेणु जी को जेल में ही  पहली बार टी0बी0 हुआ। उन्हें इलाज के लिए पटना अस्पताल में भर्ती की गईं । वही इलाज के लिए लतिका जी  उनके सेवा के लिए कार्य कर रही थी। रेणु जी और लतिका जी का ये पहली मूलाकात थी। रेणु जी ठिक होने के बाद भी दोनों में चिट्ठी-पत्री का शिलशिला चलता रहा। कुछ साल बाद रेणु जी को फिर  टी0बी0 ने परेशान करना शुरू कर दिया । रेणु जी, घर में बिना बताये  इलाज के लिए लतिका जी के पास गए । उस दोरान दोनों में काॅफी नजदीकिया बढ़ती गई ,तब उसने शादी करने का फैसला कर लिया ।

            रेणु जी के स्वतंत्रता संग्राम के एक से एक किस्शे  है। नौ साल की उम्र में वे बानर सेना की गठन 40 साथियों के साथ सिमरबनी स्कूल में किया।देश  के प्रति इतना प्रेम ! ,जब उनको जेल में उनका नाम पूछा गया तो उन्होंने कड़क-कर जवाब दिया.....जवाहर लाल नेहरू पिता...मोती लाल नेहरू, उनके सभी साथियों ने भी वही जवाब दिया।जेलर इतने से बच्चे की हिम्मत देखकर दंग थें।

      रेणु जी का साहित्य क्षेत्र में झुकाव बचपन में सात साल की उम्र  में ही हुआ।रेणु जी रामदेनी तीवाड़ी जी के पास बचपन की पढ़ाईं कर रहे थे।तीवाड़ी जी ने हस्तलिखित पत्रिका चालू किया । रेणु जी उस पत्रिका का अनुवाद करते थे। कुछ दिनों बाद रेणु जी सिमरबनी स्कूल में नामाकंन हुआ। वहाॅ भी उन्होंने तीवाड़ी जी की पत्रिका का अनुवाद करना नही छोड़ें और वे विधार्थी जीवन की पहली कहानी परीक्षा  लिखें। जो बहुत ही सरहानीय और रूलानी वाली कहानी थी। उनका नवीं तक की पढ़ाईं फारबीसगंज में हुआ , दसवीं की पढ़ाई नेपाल में । बाद में काशी  हिन्दु विश्वविद्यालय  से इन्टर की पढ़ाई किये  । वहाॅ उसने बट -बाबा  कहानी लिखे जो पूरे  विश्वविद्यालय में काॅफी चर्चा में रही। विष्वविद्यालय में वे अलग-अलग संगठन  के अध्यक्ष भी रहे ।

       सन् 1954 में रेणु जी की मैला  आँचल  उपन्यास प्रकाशित हुई।इस उपन्यास को प्रकाशित कराने में लतिका जी का बड़ा सहयोग है, उन्होंने अपने गहनों को बेचकर इसे प्रकाशित करवाई । रेणु जी ख्याति सिर्फ महान् स्वतंत्रता सेनानी तक ही सीमित नही रही ।वे साहित्यिक क्षेत्र साहित्य षिल्पी के रूप में पहचाने जाने लगे। मैला आँचल  आँचलिक साहत्यि है। मैला आँचल भारत में ही नही पूरे विश्व  के 125 से अधिक देशो  के लोगो ने अपने ह्रदय में बसाया ।आज इन देशों  की विष्वविद्यालय में रेणु की लिखी कहानीयाँ और उनकी जीवनी पढ़ाई जाती है। विष्व के कईं देषों  ने विष्वविद्यालय में रेणु शोधपीठ  स्थापित किये है।

        रेणु जी की ख्याती अब स्वतंत्रता और साहित्यिक क्षेत्र में ही नही रही । उनके द्वारा लिखी कहानी "मारे  गए गलफ़ाम" पर बनी फ़िल्म तीसरी  कसम हिट हुई। यह फ़िल्म राष्टीय पुरस्कार से सम्मानित हुईं। मैंला आँचल उपन्यास पर बनी धारावाहिक मैला आँचल  दूरदर्शन  के दर्शको  का काॅफी मनमोहा और वास्तिविकता से पहचान कराईं। बाद में  उनके द्वारा लिखी एक और  कहानी पर  डागडर  बाबु   फ़िल्म बनाई गई , दुर्भाग्यवश  रिलीज नही हो पाईं।

       रेणु जी की दर्जनों साहित्य लोगो के दिलों में हैं। उन्हें  राष्ट्रपति के द्वारा पद्श्री के सम्मान से सम्मानित किया गया। जिन्हें उसने जे0पी0 आन्दोलन में भारत सरकार को लोटा दिया।

       रेणु जी की बिमारी ने उनका पिछा नही छोड़ा , जिस कारण 11 अपैल 1977 को उनके अपरेशन में डाॅक्टरों के कारण गड़बड़ी  हुई ,वे स्वर्गसिधार गए। रेणु जी की हत्या हुई या डाॅक्टरों की चूक ,उनकी मृत्यू अभि भी रहस्य है। सरकार से सिफारिश  है कि वो इनकी जाँच कराऐँ।

      रेणु जी जिवित नही रहे| लेकिन वो अपने कहानीयों में बालदेव मिश्र ,काली चरण,डागडर साहब,लक्ष्मी दासीन ,महंत सेवादास जैसे पात्र को उपन्यास में जीवित छोड़ गए हैंे।



         




Comments

  1. राहुल रेणु जी !
    क्या यहां कही गई बातें प्रामाणिक हैं ? मैं स्वयं रेणु जी के साहित्य के प्रति एक विशेष लगाव रखता हूँ। आपकी यह पोस्ट पढ़ने के बाद मेरी जिज्ञासा रेणु जी के विषय में और अधिक जानने की है किंतु प्रामाणिक अध्ययन। स्पष्ट करने का सहयोग करें।

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    1. मुझे बेहद ख़ुशी हुई की आप मेरी पोस्ट पढ़ कर रेणु जी के प्रति काफी उत्साहित है | मेरी द्वारा कही गई सभी बातें प्रमाणिक है | मैं आपको पूर्ण रूप से सहयोग करूँगा |
      वाट्सप -8538995651

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  2. इसमें कोई शक नहीं कि वे हिंदी साहित्य जगत के लिए एक ध्रुव तारा हैं। जितनी भी बार उनके मैला आंचल को पढ़ती हूं एक नया पक्ष समझ में आता है। शत शत नमन

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    1. जी बिलकुल ! हर बार नई बातों के साथ ,ग्रामीण परिवेश को बहुत समय तक मनन करता रहता हूँ |

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  3. प्रिय राहुल ! मैंने ही यायावर जी की पोस्ट पर आप से इस ब्लॉग के बारे में पूछा था और आपसे नम्बर माँगा था। आपने मुझे फेसबुक पर इन्वाइट किया था। उस पेज पर जाकर मैंने आपकी एक पोस्ट पढ़ कर कमेंट बॉक्स में लिखा था कि लिख कर जरूर पढ़ा करें। एक अच्छे लेखक के लिए बहुत जरूरी है।

    मैं अपने इस ब्लॉग का नाम और पासवर्ड भूल गया था इसलिए यहाँ संपर्क नहीं कर पा रहा था।

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    1. मुझे बहुत ख़ुश हो रही है कि आपकी ब्लॉग पुनः ठीक हो गई है |
      आपकी मार्गदर्शन मिली और मैं अब ,लिखने के बाद एक बार ज़रुर पढ़ता हूँ |
      आदरणीय भारत यायावर सर ...मुझे साहित्यिक रूप से बहुत मदद कर रहें है |
      मेरा मोबाइल नंबर 7544847453.

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  5. रेणु परिवार से सम्बद्ध है, उनके सम्मान को ध्यान में रखते हुए हिंदी सीखें, आपके पोस्ट में भाषाई त्रुटियां बहुत है इसे न्यूनतम रखने का प्रयास करें

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    1. जी ! आपने मेरा मार्गदर्शन किया ,मुझे बहुत खुशी हुई है | मैं अब से ध्यान रखूँगा |

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