|| उलझन ||
-राहुल राज रेणु
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बचपन से राजीव बाहर खटा है ...राजीव की जिन्दगी हमेशा से बहुत ही साफ-सुथरी रही है ,जब जो मन में आया ,उसने किया | लेकिन लोगो से जुड़ कर भी कम ही रहा है ,बस ! पढाई के क्रम में जितनी सी दोस्ती हुई ,उन्ही से मेल -जोल आज तक है | किसी तरह इंटर की पढाई किया ..वह भी अपना मन से नहीं घर वालों के मन से | क्योकि ....राजीव के सिर पर पैसा कमाने का भुत सवार हो गया | पिता जी ने उनको बहुत समझने की कोशिश किन्तु उन्होंने पिता की बात कभी नही मानी ,जबकि कई बार तो ऐसा हुआ ....जहाँ काम किया ..बच्चा समझ कर काम तो ज्यादा लिया ही लेकिन उचित मजदूरी नहीं दिया ,कुछ ऐसे काम भी किये जिसमे पिता से बिना सलाह मशवरा के ही किया ,बाद में बड़ी घाटा की सामना करना पड़ा | घाटा का सारा पैसा पिता कों देना पड़ा |
खैर !छोरिये ...राजीव का उस वक़्त उम्र ही ऐसा था की, उनको सही-गलत का फर्क ही नही मालुम हुआ |कोई बात नही उस उम्र के हर लड़कों में आमिर बनने का खुमार होता है|
आगे ........
ठण्ड का समय है खाना बना हुआ, एक घंटा हो गया है .......ठंडी हो जाएगी ,बार -बार गर्म करने से ख़राब भी हो सकती है ....(राजीव की माँ )
नहीं..!मुझे भूख नही लगी है ...| राजीव खाया .....? (पिता जी )
नही ..!उन्होंने भी नही खाया ...| आप जायेंगे तो राजीव भी थोड़ा खायेगा |
ठीक ...तुम खाना परोसो ...मैं आ रहा हूँ |
मेज पर दो थाली में परोसा हुआ सुन्दर तरीके से सजा हुआ थोड़ी -थोड़ी पकवान और रोटी ,पनीर की सब्जी ,खीर बहुत मीठी थी , रमेश जी (राजीव के पिता ) ज्यादा मीठा नही खातें है ,"उम्र भी हो गया है ... 45-55 | कटोरी राजीव की ओर बढ़ा दिया | राजीव कों अपने पिता से बात करने का यही सही मौका लगा | नही सोच कर ..आखिर बोल ही दिया ...|
पिता जी ..! मुझे अपने पैरों पर खड़ा होना चाहता हूँ...| शहर जाना चाहता हूँ ....| कोई भी छोटी - मोटी कम कर के घर की आर्थिक स्थिति सुधारना चाहता हूँ | राजीव अपने सर कों निचे झुका एक ही बार में सारी बात बोल दिया |माँ कों सारी पहले से जानती थी ,उन्हें राजीव की सारी बात समझ में आ गई ,लेकिन रमेश जी कों एक लाइन में बोली गई धीमी आवाज कुछ समझ में आया कुछ नही |यह बात तो एक दम साफ-साफ पता चल गया की राजीव काम करना चाहता है |
" मित्र ..राजीव के घर के खान -पान से आपको लगा होगा की राजीव के घर की आमदनी अच्छी होगी... किन्तु ऐसा बिलकुल भी नहीं हैं , पुराना अमीर था ,ठाठ- बाठ से जिया हुआ जिंदगी है पूरा परिवार का | इस लिए रिश्तेदार के लोग बड़ा घराना का है ,अगर बड़े घरों के मेहमान आएगा तो उसका खातिरदारी भी तो उन्ही के जैसा करना पड़ेगा ना ,चाहे रमेश जी कों पेहचा -उधार करके करना पड़े या चोरी करके | आज महमदिया वाला मौशा का बेटा आया था ,विदेश में रहता है ...|घर -द्वार से ज्यादा मतलब भी नहीं रखता है , आठ -नों वर्ष के बाद तीन -चार दिन पहले ही विदेश से आया है |
आज चला गया है ..बोल रहा था यहाँ मन नही लगता है |राजीव की माँ से बस ..भेट - घाट के लिए आया था ,तीन बजे शाम में आया और चार -साड़े चार में खाना खा कर गया | घर में ना तो नून -तेल था ना ही रमेश जी के हाथ में भी एक रुपया नही था , वह तो सुधीर दो सौ रुपया दिया तो ...अजय का मान -आदर अच्छा से हो गया | सुधीर बहुत अच्छा आदमी है ,गरीब है ,मछली बेचता है लेकिन दिल का उदार आदमी है ,एक बात पर रमेश जी कों पैसा पेहिचा दिया |
आह ! बहुत दिन बाद खीर खाया है ,बेचारा राजीव | घर का ऐसा स्तिथि हो गया है ...रात खाता है तो दिन झकता है ,दिन खाता है तो रात झकता हैं
ठीक है ,लेकिन शहर में कौन सा काम करेगा |
कुछ भी कर
लूँगा ,सब्जी बेचूंगा नहीं तो किसी दुकान में रह लूँगा |दुकान-दारी का भी अनुभव हो
जाएगी |
किन्तु ! जब ऐसी ही
काम करना था तो मैंने बेकार ही तुम्हे पड़ाया –लिखाया |
एक काम करना तुम शोभना का भतीजा मंटू मंडल , वो शहर में ही रह रहा है
तुम उनसे मिल लेना मैं उनको फोन कर
दूंगा,वो सही काम खोज देगा | (पिता है ना ! बेटे की चिंता तो होगी ,भले ही दिन –भर
में दस बार खरी-खोटी क्यों ना सुना दे |
तीन दिन बीत गया है
अभी तक राजीव कों कोई ढंग का काम नहीं मिल रही है | मंटू के रूम में रह कर मुफ्त
का खाना अच्छा नही लग रहा है |
नींद गहरी आ गई है मंटू
कों लेकिन राजीव खुले आँख से काफी कुछ सोच रहा है |बहुत सोचने के बाद उन्हें अनिल
गुप्ता जी का गुप्ता मेडिकल में ही काम करना सही लगा |भले ही 2500 रुपया महिना देगा, एक टाइम का खाना भी देगा | गुप्ता जी
यह भी बोले अगर रहिएगा तो मेरे घर पर एक रूम है ,आपका पैसा बच जाएगी ,मैं आपसे एक
रुपया भी नही लूँगा |
(लेकिन गुप्ता जी फार्मासिस्ट सत्तू खाकर नही बने है ,वे बहुत
होशियार है अपना रूम मुफ्त में देकर घर- बाहर दोनों काम आसानी से निकल ले लेंगे |
पहली बार राजीव ने सही
फैसला लिया |
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