Teen maut || rahul raj renu ||तीन मौत || राहुल राज रेणु || part-1

|| तीसरी कसम अर्थात् मारे गए
शैलेन्द्र || पेज -3
----भारत यायावर
मैट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद 1940 ई० में रेलवे में इंजीनियरिंग सीखने वे बम्बई आए। 1942 ई० के अगस्त क्रांति में वे शरीक हो गए और जेल गए। जेल से बाहर आने
के बाद वे रेलवे में नौकरी करने लगे और इप्टा के थियेटर में काव्य-पाठ।
1947 ई० में राज कपूर एक बार अपने पिता पृथ्वीराज कपूर के साथ इप्टा के
थियेटर में गए और उन्होंने शैलेन्द्र को काव्य-पाठ करते सुना। शैलेन्द्र सुमधुर
कंठ से गा रहे थे — ‘‘मोरी बगिया में आग लगा गयो रे गोरा परदेशी...’’
राज कपूर उनसे बेहद प्रभावित हुए। उस वक्त राज कपूर अपनी पहली
फिल्म बना रहे थे — ‘आग’। उन्होंने शैलेन्द्र से अपनी इस फ़िल्म के लिए गीत लिखने
को कहा, लेकिन शैलेन्द्र ने इन्कार कर दिया।
उन्होंने राज कपूर से दो टूक शब्दों में कहा — ‘‘मैं पैसे के लिए नहीं लिखता।’’
राज कपूर को शैलेन्द्र का यह अन्दाज़ लुभा गया। उन्होंने शैलेन्द्र
को कहा कि अच्छी बात है, कभी इच्छा हो तो मेरे पास आइएगा।
उस ज़माने में भी लोग फ़िल्मों में जाने के लिए लालायित रहते थे, पर एक नौजवान कवि का पैसे के लिए नहीं लिखने की प्रतिज्ञा, मामूली बात नहीं थी। उस समय शैलेन्द्र में विद्रोही चेतना थी।
अन्तर्मन में आग थी। जनवादी ओजस्विता थी। उनके गीत वामपंथी तेवर के थे। कुछ को
बानगी के तौर पर उन्हें यहां प्रस्तुत किया जा रहा है —
वे अन्न-अनाज उगाते
वे ऊँचे महल उठाते
कोयले-लोहे-सोने से
धरती पर स्वर्ग बसाते
वे पेट सभी का भरते
पर खुद भूखों मरते हैं.
यह श्रमजीवी वर्ग के जीवन की त्रासदी को अभिव्यक्ति करने वाली
पंक्तियाँ हैं। दूसरी कविता भगत सिंह को संबोधित —
भगत सिंह इस बार न लेना काया भारतवासी की
देशभक्ति के लिए आज भी सज़ा मिलेगी
फांसी की
यदि जनता की बात करोगे तुम गद्दार
कहाओगे
बंब-संब की छोड़ो, भाषण दोगे, पकड़े जाओगे।
‘आज़ादी’ पर लिखी कविता की बानगी देखिए — उनका कहना है —
यह कैसी आज़ादी है
वही ढाक के तीन पात है, बरबादी है
तुम किसान मज़दूरों पर गोली चलवाओ
और पहन लो खद्दर, देश-भक्त कहलाओ।
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