phanishwar nath renu| shailendr| teesri kasam |bharat yayavar| rahul raj renu|page-2| फणीश्वर नाथ रेणु | शैलेन्द्र | तीसरी कसम अर्थात मारे गए शैलेन्द्र | भारत यायावर |राहुल राज रेणु |पेज -2
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|| तीसरी कसम अर्थात् मारे
गए शैलेन्द्र || पेज -2
----भारत यायावर
शैलेन्द्र अपने एक गीत में अपनी अभिलाषा को उजागर करते हैं —
सुनसान अंधेरी रातों में, जो घाव दिखाती है दुनिया
उन घावों को सहला जाऊं, दुखते दिल को बहला जाऊँ
सुनसान मचलती रातों में, जो स्वप्न सजाती है दुनिया
निज गीतों में छलका जाऊं, फिर मैं चाहे जो कहलाऊँ
बस मेरी यह अभिलाषा है।
इसी अभिलाषा के कारण शैलेन्द्र महान् गीतकार हो सके, जनकवि बन सके। सिनेमा में — जहाँ हर प्रकार की कला बिकती है या
कहें कि कहानी, गीत, संगीत आदि कलाओं का यह एक बहुत बड़ा बाज़ार है — शैलेन्द्र के गीत
अपनी साहित्यिकता और गरिमा बरकरार रख सके। उन्होंने जन-जीवन के स्वप्न, आकाँक्षा और पीड़ा को ऐसी वाणी दी, जो आज भी अमर है।
राज कपूर ने शैलेन्द्र के विषय में सही लिखा है — ‘‘उन्होंने पैसों
के लोभ में गीत कभी नहीं लिखे...जब तक उनके अपने अन्तर्भावों की गूँज नहीं उठती, तब तक वे नहीं लिखते थे।’’ अर्थात् शैलेन्द्र के गीत व्यावसायिकता
के एक बड़े क्षेत्र में अन्तर्आत्मा की आवाज थे. उनमें चिन्तन है, मनन है, दर्शन है, विचार है, आध्यात्मिकता है, कम शब्दों में बड़ी बात कहने की कला है। मर्म को छूने वाली हृदय की
बात है। सच्चाई, सफाई, ईमानदारी और सादगी है।
शैलेन्द्र दिल की बात कहते थे और उसे संवेदनशील मनुष्य ही सुन सकता
था, ग्रहण कर सकता था। झूठ, फरेब से उन्हें घृणा थी। सच पर मर मिटने की ज़िद। भले ही अनाड़ी या
मूर्ख समझ लिये जाएँ, यह स्वीकार है। उनका काम है दर्द
बांटना, लोगों के लिए प्यार रखना — यही
वास्तविक रूप में जीने की कला है। जीना इसी का नाम है। यही कारण है कि शैलेन्द्र
आम जनमानस में अपनी जगह बना सके। उन्होंने हिन्दुस्तानी दिल की पहचान की और उसे
अभिव्यक्ति दी।
शैलेन्द्र के पिताजी केसरीलाल दास बिहार के रहने वाले थे। वे फौजी
थे। वे जब रावलपिण्डी में पदस्थापित थे, तब वहीं 30 अगस्त, 1923 ई० में शैलेन्द्र का जन्म हुआ। उन्होंने शैलेन्द्र का नाम रखा
शंकरलाल दास। जब उनका पाठशाला में नामांकन हुआ तो नाम लिखा गया — शंकरलाल केसरीलाल
दास। अवकाश प्राप्ति के बाद शैलेन्द्र के पिताजी मथुरा में रहने लगे. शैलेन्द्र का
बचपन, शिक्षा-दीक्षा सब मथुरा में ही हुआ। वे स्कूली जीवन से ही कविता
लिखने लग गये थे। उन्होंने अपना कवि-नाम शैलेन्द्र रखा। अब पूरा नाम हो गया
शंकरलाल केसरीलाल दास शैलेन्द्र। बाद में अपना दो शब्दों का नाम रखा — शंकर
शैलेन्द्र।
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