Teen maut || rahul raj renu ||तीन मौत || राहुल राज रेणु || part-1

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                                                                 -ःतीन मौतः-                                                                                                        -राहुल राज रेणु    रात का खाना खाने के बाद थोड़ी बहुत खाना बच जाती थी। उस खाने को सुलोचना बाहर बरामदा पर रख जाती थी।    “सुलोचना कटिहार के सबसे धनी लाला का दुलारी बेटी थी। सुलोचना के पिता जी इज्जतदार व्यक्ति थें।उनके घर में तीन ही आदमी का बसेरा रहता.....माँ-पिता जी और सुलोचना।सुलोचना का एक बड़ा भाई बैंगलोर में ईंजीनियर  की पढ़ाई कर रहा है।सुलोचना बी0एस0सी की छात्रा है...

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                                   || अंतिम गांधीवादी -जय प्रकाश नारायण ||                  पेज -3

 

                                                                   --- भारत यायावर

 

 

 

उन्होंने अपनी पुस्तक 'टुवर्ड्स टोटल रिवोल्यूशन' की प्रस्तावना में अपने जीवन के तमाम उतार-चढ़ाव और परिवर्तन की ओर संकेत करते हुए लिखा है - 'मुझ पर अक्सर अपने विचारों और कार्यक्रमों को बदलने का आरोप लगाया गया है। मेरा दावा है कि इन बाहरी परिवर्तनों के बीच मैं एक निश्चित लक्ष्य की ओर बढ़ता रहा हूँ, एक निश्चित प्रश्न का उत्तर ढूँढ़ता रहा हूँ : भारत को कैसे स्वतंत्र किया जाए। यह तलाश मुझे कई मतवादों एवं राजनीतिक दलों में ले गई, जब तक मैं इस निष्कर्ष पर नहीं पहुँचा कि इसका उत्तर गांधीजी के पास है, गांधी के विचारों का बुद्धिहीन उपयोग नहीं, बल्कि उसका गतिशील एवं क्रांतिकारी रूपांतर।'

 

 

 

 

 

 

जयप्रकाश ने अपने जीवन और अपनी विचारधारा को स्पष्ट करने के लिए 'समाजवाद, सर्वोदय और लोकतंत्र' नामक पुस्तक के पृष्ठ 157-58 पर लिखा है - 'अपने युवाकाल में, मैं एक उग्र राष्ट्रवादी था और मेरा झुकाव क्रांतिकारी पथ की ओर था, जिसकी शानदार अगुआई उन दिनों बंगाल कर रहा था। परंतु उस समय भी दक्षिण अफ्रीका के सत्याग्रह ने मेरे युवक-हृदय को आकृष्ट किया था। मेरी क्रांतिकारी प्रवृत्तियों के प्रौढ़ होने के पूर्व गांधीजी का प्रथम असहयोग आंदोलन एक अजीब, ऊपर उठानेवाले झंझा की तरह इस देश में छा गया था। मैं भी उस समय के उन हजारों नवयुवकों में था, जो उस झंझावात में पत्तों की तरह, क्षणभर के लिए आसमान तक उठ गए थे। एक महान विचार की आँधी के साथ ऊपर उठने की अल्पकालिक अनुभूति ने उस समय मेरे जीवन पर जो छाप छोड़ी, उसे काल तथा वस्तुस्थिति की कुरूपता का अति परिचय भी मिटा नहीं पाया। यही वह समय था, जब स्वतंत्रता मेरे जीवन का संकेत-दीप बनी, और तब से वह उसी रूप में रही है। कालांतर में उस स्वतंत्रता ने मात्र स्वदेश की स्वतंत्रता से आगे बढ़कर, प्रत्येक देश में, प्रत्येक बंधन से मानव-मुक्ति की भावना को आत्मसात किया। ...यह स्वतंत्रता मेरे जीवन की वासना बन गई है और मैं कभी भी उसका सौदा रोटी के लिए, सत्ता के लिए, सुरक्षा के लिए, समृद्धि के लिए, राष्ट्र के गौरव के लिए या किसी अन्य वस्तु के लिए नही होने दूँगा।'

 

 

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