Teen maut || rahul raj renu ||तीन मौत || राहुल राज रेणु || part-1

|| अंतिम
गांधीवादी -जय प्रकाश नारायण ||
पेज -2
--- भारत यायावर
ऐसा था जयप्रकाश का व्यक्तित्व! यही कारण
है कि 1942 की क्रांति को गांधी के बाद जन-जन तक फैलाने वाले जयप्रकाश नारायण
को ब्रिटिश सरकार की पुलिस बहुत लंबे समय के बाद गिरफ्तार कर पाई। उन्हें हजारीबाग
के सेंट्रल जेल में रखा गया। किंतु एक रात जब जयप्रकाश जेल से फरार हो गए तो यह उस
समय की सबसे महत्वपूर्ण घटना मानी गई। 42 के आंदोलन में शरीक लाखों
देशवासियों में एक नई स्फूर्ति, नई चेतना आ गई और आंदोलन और उग्र हो उठा। उस समय
समाजवादियों द्वारा बनाए गए 'आजाद दस्ता' के द्वारा कई थानों को जला दिया
गया, रेल
की पटरी उखाड़ी गई, सरकारी
दफ्तरों पर कब्जा किया गया। अंग्रेजी साम्राज्य की मजबूत नींव को जड़ से हिलाकर
कमजोर कर दिया गया। यह सब जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व एवं प्रेरणा से हुआ था।
गांधीजी के 'करो
या मरो' के
मंत्र में उन्होंने हिंसा को भी प्रश्रय देकर तब उसे एक उग्ररूप दे दिया था। वे 42 की क्रांति के 'हीरो' हो गए थे। इसीलिए गांधी
ने उनकी मुक्तकंठ से प्रशंसा करते हुए कहा था - उनके हर अक्षर में देशप्रेम की आग
धधकती है और उन पर किसी भी देश को गर्व हो सकता है।
गांधी
की कई बातों से तब जयप्रकाश असहमत थे, जिनका जिक्र गांधी ने किया है।
उसका कारण है। जयप्रकाश तब मार्क्सवादी थे। उन्होंने अपने बारे में लिखा है - 'अमरीका में मैंने
खदानों, कारखानों
और बुच्चड़खानों में काम किया। मैंने जूतों में पॉलिश की और होटलों मे पाखाने साफ
किए। ...अमरीका में मैं कम्युनिस्ट बना, पर स्टालिनवादी नहीं बना। मैं
कम्युनिस्ट बनकर स्वदेश लौटा था। लेकिन कम्युनिस्ट पार्टी में भरती नहीं हुआ, कांग्रेस में हुआ। इन
लोगों ने कहा, गांधी
पूँजीपतियों का एजेंट है। लेकिन मैंने लेनिन से ही सीखा था कि उपनिवेशवादी देशों
में कम्युनिस्टों को किसी भी हालत में आजादी की लड़ाई से अलग नहीं रहना चाहिए, भले ही उसका नेतृत्व
बुर्जुवा वर्ग और पूँजीपतियों के हाथों में क्यों न हो।'
यह
ध्यान देने की बात है कि जयप्रकाश कम्युनिस्ट होते हुए भी गांधी के नेतृत्व के साथ
क्यों थे और इस कारण कम्युनिस्ट पार्टी के नेताओं से उनका मतभेद था। गांधी से भी
मतभेद था, कारण
वे कम्युनिस्ट विचारधारा के थे। किंतु आजादी के बाद वे धीरे-धीरे गांधीमय होते गए
और विनोबा भावे के सर्वोदय और भूदान आंदोलन में सक्रिय हो गए। उनके इस फैसले से
समाजवादी खेमे में एक निराशा का माहौल व्याप्त हो गया। समाजवादी आंदोलन ही बिखर
गया। जयप्रकाश का तेजस्वी, आक्रामक
व्यक्तित्व ही मानो लुप्त हो गया। सर्वोदय आंदोलन की विफलता से जयप्रकाश भी हताश
हुए। फिर उनका एक अलग ही स्वरूप दस्यु उन्मूलन में उजागर हुआ। 1970 ई. में मुसहरी नामक
गाँव में उन्होंने आतंकवाद की ओर अग्रसर नवयुवकों को ग्राम-निर्माण की ओर
उत्प्रेरित किया। मुसहरी से उन्होंने प्रसिद्ध कथाशिल्पी फणीश्वरनाथ रेणु को एक
लंबा पत्र लिखा - 'यहाँ
आकर देखो, तुम्हारा
'मैला
आँचल' और
मैला हो गया है।' और
फिर बिहार आंदोलन में उनका तेजस्वी स्वरूप पुनः प्रकट हुआ।
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