Teen maut || rahul raj renu ||तीन मौत || राहुल राज रेणु || part-1

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                                                                 -ःतीन मौतः-                                                                                                        -राहुल राज रेणु    रात का खाना खाने के बाद थोड़ी बहुत खाना बच जाती थी। उस खाने को सुलोचना बाहर बरामदा पर रख जाती थी।    “सुलोचना कटिहार के सबसे धनी लाला का दुलारी बेटी थी। सुलोचना के पिता जी इज्जतदार व्यक्ति थें।उनके घर में तीन ही आदमी का बसेरा रहता.....माँ-पिता जी और सुलोचना।सुलोचना का एक बड़ा भाई बैंगलोर में ईंजीनियर  की पढ़ाई कर रहा है।सुलोचना बी0एस0सी की छात्रा हैं।”   सोमवार की रात को सुलोचना खाना खाने के बाद बाहर बरामदे पर खाना कुत्तों को खाने रख गईं।सोने के कुछ देर बाद अचानक  उनको याद आई कि अँगुठी भी वह बाहर ही छोड़ गई हैं।उलटे पाँव वह वापस बाहर आने लगी ,उसने देखा कि एक आदमी काॅफी बुरी तरह से फटी-चिटी गंदी कपड़ा पहना हुआ ।सर की बड़ी-बड़ी भद्दी बाल,दाड़ी भी बड़ी पुरा गंदा दिख रहा था।सुलोचना काॅफी डर गई...वह व्यक्ति भी ठंड से सिकुड़ रहा था। ठंड से उनके हाथों से वह जुठा खाना खाया नही जा रहा था।सुलोचना भिखारी स

D S Collage Katihar |दर्शन साह महाविद्यालय,कटिहार

                                                       दर्शन  साह महाविद्यालय,कटिहार           
                                                       (डी0एस0काॅलेज,कटिहार)
                                                                                                              -राहुल राज रेणु
       दर्शन   साह महाविद्यालय अपने स्थापना काल से ही समस्त बिहार में चर्चित रहा हैं। यह विद्यालय कोशी  ,महानन्दा और दक्षिण में गंगा पर अवस्थित अति सुशोभित हैं।
          कटिहार का यह “मैला आँचल“ भुदानी पुरोधा स्व0 बैधनाथ चैधरी ,उपन्यासकार स्व0 अनुपलाल मण्डल ,अमर कथा षिल्पी स्व0 फणीश्वर नाथ “रेणु“ और अमर शहीद  छात्र ध्रुव कुण्डू सरीखे सपूतों को जन्म देने के बाद “दर्शन   साह महाविद्यालय“ ने एक अलग ही पहचान बनाई हैं।
         विद्यावाणी का विलास तथा शिक्षण संस्थान सारस्वत-अनुष्ठान के केन्द्र,जहाँ से ज्ञान की  किरणें विकीर्ण होकर मानवता के उज्जवल पक्ष को उद्भाषित  करती हैं एवं मानव जीवन को सार्थकता प्रदान करती है। इस ऋषि-परम्परा को आगे  बढ़ाते हुए पुण्य संकल्प के साथ 1 अगस्त 1953 ई0 को इस महाविद्यालय की स्थापना “कटिहार महाविद्यालय“ के रूप में की गईं।
       “मैला आँचल“ की यह विद्यालय को महान् शिक्षाविदों ,समाजसेवियों से लेकर सामान्य से सामान्य नगर वासियों के स्वप्न और सघर्ष के साथ तथा स्व0 दर्शन  साह, स्व0 रामबाबू सिंह तथा स्व0 कालीचरण यादव जैसे महान् उदारवादी महाविद्यालय के प्रिय लोगों के संचित धनों से आज इस महाविद्यालय का सौभग्य  गौरवपूर्ण हैं। और इन सबों के साथ “महर्षि संत मेंही दास जी“ के शुभ  आशीर्वाद  के साथ इक्यावन रूपये नकद प्राप्त हुआ हैं।
       “कटिहार महाविद्यालय का स्वप्न ,पराषर भट्टाचार्य , नगर पालीका के तत्कालीन अध्यक्ष  बाबू त्रिवेणी नायक, तत्कालीन उपाध्यक्ष चिरंजीवी लाल सुरेका,सुर्यदेव नारायण सिन्हा, दीनानन्दन सिंह झा (छितन बाबू), मंुसिफ हरिवंशी  सहाय, काली प्र0 सिंह ,बाबू ढंढी राम डालमियाँ (सभी स्वर्गीय) तथा युवा स्वतंत्रता सेनानी श्री दुर्गा प्र0 गुप्ता के साथ  चार आना, दो आना , एक-एक आना तक  प्रतिदिन देने वाले दुकानदारों  तथा सब्जी-विक्रेताओं से साकार हो पाया ।
       अपने स्थापना काल में प्रधानाचार्य स्व0 नारायण प्र0 वर्मा के नेतृत्व में दो लिपिकों, दो आदेशपालों तथा 50 छात्रों के साथ यह महाविधलय तात्कालिक रूप से  “कटिहार उच्च विद्यालय“ में चलने लगा।
       स्व0 चिरंजीवी लाल तथा स्व0 मोहन लाल महतो के आग्रह पर स्व0 कारे लाल यादव ने गौषाला के निकट एक बड़ा भू-भाग महाविद्यालय के भवन निर्माण हेतु दान दिया। स्व0 राम बाबू सिंह ने भी कुछ एकड़ जमीन के साथ 32,000 रू0 नकद दान दिया। इसी बीच विश्वविद्यालय  में सम्बंधन हेतु 75,000 रू0 भुगतान की अनिवार्यता को देखते हुए ,दाता  दर्शन  साह ने महाविद्यालय को कुल 1,10,000 रू0 का दान इस आग्रह के साथ दिया कि महाविद्यालय भवन का निर्माण वर्तमान में स्थित बहुत बड़े भू-भाग पर किया जाय। स्व0 कारेलाल यादव तथा स्व0 लक्ष्मी यादव की सहर्ष सहमति से उनके द्वारा दान की गई भूमि को आर0पी0एच0एम0 जूट मिल के स्वामी स्व0 राम कुमार सक्सेरिया के हाथों बेच कर उक्त राशी  को महाविद्यालय के सवर्धन में लगाया गया। स्व0 महेश  प्र0 सिंह के द्वारा सन् 1955 में कुल 18 एकड़ 54 डिसमल भू-भाग पर महाविद्यालय भवन के निर्माण के शिलान्यास किया गया और 1956 में कुल 1,42,720 रू0 की लागत से बने अपने नव-निर्मित भवन में महाविद्यालय का अंतरण हो गया। महाविद्यालय का नामकरण दाता शिरोमणि स्व0 दर्शन  साह जी के नाम पर किया गया...........दर्शन  साह महाविद्यालय कटिहार।
      इसके पूर्व स्थापना काल में ही महाविद्यालय के देख-रेख के लिए समिति का गठन किया जा चूका था। जिसके प्रथम अध्यक्ष स्व0 हरिवंशी  सहाय(मंुसीफ) और प्रथम सचिव स्व0 दीनानन्द सिंह झा थे।प्रधानाध्यापक स्व0 नारायण प्र0 वर्मा के साथ श्री रामदहिन सिंह ,स्व0 इन्द्रेव प्र0 गुप्ता ,स्व0 पृथ्वी चन्द्र अग्रवाल ,स्व0 के0एन0 सहाय ,डाॅ0 बी0एल0मण्डल,स्व0 बी0सी0 कर्मकार, स्व0 एस0 डी0 झा एवं डाॅ0 अब्दुल गफूर ने महाविद्यालय के प्रारम्भिक काल में ही व्यख्याता के रूप में योगदान दिया।बाद में आगे चल कर ये ही महाविद्यालय के नवरत्न कहलाने लगें। प्रधान सहायक तथा लेखापाल के रूप में क्रमश : स्व0 उमानन्द सिंह झा एवं स्व0 सुरेश  चन्द्र बर्मन जी की नियुक्ति की गई।स्व0 ब्रह्मदेव ना0 सिंहा ने ष्षासी निकाय के आग्रह पर महाविद्यालय के प्रथम प्रधानाचार्य स्व0 ब्रह्मदेव ना0 सिंहा के नेतृत्व में डी0एस0काॅलेज त्वरित गति से सफलता के उत्तरोत्तर सोपान पर चढ़ने लगा। अल्पकाल में ही सुधी षिक्षकों तथा विद्याभिलाषी छात्र-छात्रों के लिए इस महाविद्यालय की उपलब्धियाँ गर्व का विषय बन गई।बिहार विष्वविद्यालय ,भागलपुर विष्वविद्यालय तथा ललित नारायण मिथिला विष्वविद्यालय की सुदीर्घ यात्रा करता हुआ ।यह महाविद्यालय आज भूपेन्द्र नारायण विष्वविद्यालय की अग्रणी इकाई के रूप में सर्वमान्य हैं।



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