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Showing posts from May, 2020

Teen maut || rahul raj renu ||तीन मौत || राहुल राज रेणु || part-1

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                                                                 -ःतीन मौतः-                                                                                                        -राहुल राज रेणु    रात का खाना खाने के बाद थोड़ी बहुत खाना बच जाती थी। उस खाने को सुलोचना बाहर बरामदा पर रख जाती थी।    “सुलोचना कटिहार के सबसे धनी लाला का दुलारी बेटी थी। सुलोचना के पिता जी इज्जतदार व्यक्ति थें।उनके घर में तीन ही आदमी का बसेरा रहता.....माँ-पिता जी और सुलोचना।सुलोचना का एक बड़ा भाई बैंगलोर में ईंजीनियर  की पढ़ाई कर रहा है।सुलोचना बी0एस0सी की छात्रा हैं।”   सोमवार की रात को सुलोचना खाना खाने के बाद बाहर बरामदे पर खाना कुत्तों को खाने रख गईं।सोने के कुछ देर बाद अचानक  उनको याद आई कि अँगुठी भी वह बाहर ही छोड़ गई हैं।उलटे पाँव वह वापस बाहर आने लगी ,उसने देखा कि एक आदमी काॅफी बुरी तरह से फटी-चिटी गंदी कपड़ा पहना हुआ ।सर की बड़ी-बड़ी भद्दी बाल,दाड़ी भी बड़ी पुरा गंदा दिख रहा था।सुलोचना काॅफी डर गई...वह व्यक्ति भी ठंड से सिकुड़ रहा था। ठंड से उनके हाथों से वह जुठा खाना खाया नही जा रहा था।सुलोचना भिखारी स

phanishwar nath renu| shailendr| teesri kasam |bharat yayavar| rahul raj renu|page-6| फणीश्वर नाथ रेणु | शैलेन्द्र | तीसरी कसम अर्थात मारे गए शैलेन्द्र | भारत यायावर |राहुल राज रेणु |पेज -6

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                                  ||  तीसरी कसम अर्थात् मारे गए शैलेन्द्र ||          पेज -6                                                                            ----भारत यायावर       ‘‘ ज़िन्दगी    ख़्बाव है    ख़्बाव में झूठ क्या !    और भला सच है क्या !’’        यह गीत अपने ढांचे में नई कविता की तरह है। ‘अनाड़ी’ फिल्म का शीर्षक-गीत — ‘‘सब कुछ सीखा हमने , ना सीखी होशियारी , सच है दुनिया वालो कि हम हैं अनाड़ी !’’ जब मुकेश की आवाज में स्वर-बद्ध हुआ तो राज कपूर आधी रात को शैलेन्द्र के घर गए एवं उन्हें जगाकर गले से लगा लिया और कहा —‘‘शैलेन्द्र ! मेरे दोस्त! गाना सुनकर रहा नहीं गया। क्या गीत लिखा है ?’’ उसी फिल्म में जीवन के अपने उद्देश्य को स्पष्ट करती शैलेन्द्र की ये पंक्तियां हर संवेदनशील मनुष्य को प्रभावित कर लेती हैं — किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार जीना इसी का नाम है ! रिश्ता दिल से दिल के ऐतबार का ज़िन्दा है हमीं से नाम प्यार का कि मरके भी किसी को याद आएँगे किसी के आँसुओं में मुस्कुराएँगे क

phanishwar nath renu| shailendr| teesri kasam |bharat yayavar| rahul raj renu|page-5| फणीश्वर नाथ रेणु | शैलेन्द्र | तीसरी कसम अर्थात मारे गए शैलेन्द्र | भारत यायावर |राहुल राज रेणु |पेज -5

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                                ||  तीसरी कसम अर्थात् मारे गए शैलेन्द्र ||          पेज -5                                                                           ----भारत यायावर              फिर शैलेन्द्र ने राज कपूर की ‘बरसात’ फिल्म के लिए उसका शीर्षक गीत लिखा — ‘‘बरसात में हमसे मिले तुम सजन , तुमसे मिले हम , बरसात में।’’ यह 1949 की सबसे ज्यादा व्यावसायिक लोकप्रियता ग्रहण करने वाली फिल्म थी एवं शैलेन्द्र का लिखा यह पहला फिल्मी गीत इतना लोकप्रिय हुआ कि शैलेन्द्र की मांग फिल्मी दुनिया में अचानक बढ़ गई। ‘आग’ फिल्म के बाद राज कपूर की फिल्मों में सिर्फ शैलेन्द्र एवं हसरत के ही गीत हुआ करते थे , उसमें भी ज्यादातर शैलेन्द्र के ही। फिर राज कपूर की ‘आवारा’ 1951 ई. में प्रदर्शित हुई. इसका शीर्षक गीत —         ‘‘आवारा हूं या गर्दिश में हूं आसमान का तारा हूं’’ ने भी लोकप्रियता का    कीर्तिमान स्थापित किया। ‘श्री 420’ का शीर्षक-गीत — ‘‘मेरा जूता है जापानी , ये पतलून इंगलिस्तानी , सर पे लाल टोपी रूसी , फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी’’ तो कालातीत हो गया। राज कपूर की जिन अन्य फिल्मों में शैलेन्द्

phanishwar nath renu| shailendr| teesri kasam |bharat yayavar| rahul raj renu|page-4| फणीश्वर नाथ रेणु | शैलेन्द्र | तीसरी कसम अर्थात मारे गए शैलेन्द्र | भारत यायावर |राहुल राज रेणु |पेज -4

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                                 ||  तीसरी कसम अर्थात् मारे गए शैलेन्द्र ||          पेज -4                                                                           ----भारत यायावर          रेलवे कर्मचारियों की हड़ताल को ज़ोर देने के लिए उन्होंने कविता लिखी थी— ‘‘हर ज़ोर-जुल्म की टक्कर में हड़ताल हमारा नारा है.’’— जो देश भर में एक नारे या स्लोगन के रूप में आज तक प्रयुक्त हो रही है। 1974 के आन्दोलन में रेणु जी ने ‘हड़ताल’ शब्द की जगह ‘संघर्ष’ शब्द रखकर इस नारे को और अधिक व्यापक रूप दे दिया था। इस कविता की प्रारम्भिक पंक्तियां इस प्रकार हैं — हर ज़ोर- ज़ुल्म की टक्कर में हड़ताल हमारा नारा है ! मत करो बहाने संकट है , मुद्रा प्रसार इन्फ्लेशन है इन बनियों और लुटेरों को क्या सरकारी कन्सेशन है ? बंगले मत झांको , दो जवाब , क्या यही स्वराज तुम्हारा है मत समझो हमको याद नहीं , हैं जून छियालिस की घातें जब काले गोरे बनियों में चलती थी सौदे की बातें रह गयी गुलामी बरकरार , हम समझे अब छुटकारा है    प्रगतिवादी परम्परा में शैलेन्द्र की कविताएँ बहुत-कुछ जोड़ती हैं। उन्हें एक धार देती हैं। ‘‘खून-पसीने

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                              ||  तीसरी कसम अर्थात् मारे गए शैलेन्द्र ||          पेज -3                                                                           ----भारत यायावर               मैट्रिक की परीक्षा पास करने के बाद 1940 ई० में रेलवे में इंजीनियरिंग सीखने वे बम्बई आए। 1942 ई० के अगस्त क्रांति में वे शरीक हो गए और जेल गए। जेल से बाहर आने के बाद वे रेलवे में नौकरी करने लगे और इप्टा के थियेटर में काव्य-पाठ।          1947 ई० में राज कपूर एक बार अपने पिता पृथ्वीराज कपूर के साथ इप्टा के थियेटर में गए और उन्होंने शैलेन्द्र को काव्य-पाठ करते सुना। शैलेन्द्र सुमधुर कंठ से गा रहे थे — ‘‘मोरी बगिया में आग लगा गयो रे गोरा परदेशी...’’          राज कपूर उनसे बेहद प्रभावित हुए। उस वक्त राज कपूर अपनी पहली फिल्म बना रहे थे — ‘आग’। उन्होंने शैलेन्द्र से अपनी इस फ़िल्म के लिए गीत लिखने को कहा , लेकिन शैलेन्द्र ने इन्कार कर दिया। उन्होंने राज कपूर से दो टूक शब्दों में कहा — ‘‘मैं पैसे के लिए नहीं लिखता।’’         राज कपूर को शैलेन्द्र का यह अन्दाज़ लुभा गया। उन्होंने शैलेन्द्र को कहा

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                                        ||  तीसरी कसम अर्थात् मारे गए शैलेन्द्र ||          पेज -2                                                                           ----भारत यायावर       शैलेन्द्र अपने एक गीत में अपनी अभिलाषा को उजागर करते हैं —     सुनसान अंधेरी रातों में , जो घाव दिखाती है दुनिया     उन घावों को सहला जाऊं , दुखते दिल को बहला जाऊँ    सुनसान मचलती रातों में , जो स्वप्न सजाती है दुनिया    निज गीतों में छलका जाऊं , फिर मैं चाहे जो कहलाऊँ    बस मेरी यह अभिलाषा है।    इसी अभिलाषा के कारण शैलेन्द्र महान् गीतकार हो सके , जनकवि बन सके। सिनेमा में — जहाँ हर प्रकार की कला बिकती है या कहें कि कहानी , गीत , संगीत आदि कलाओं का यह एक बहुत बड़ा बाज़ार है — शैलेन्द्र के गीत अपनी साहित्यिकता और गरिमा बरकरार रख सके। उन्होंने जन-जीवन के स्वप्न , आकाँक्षा और पीड़ा को ऐसी वाणी दी , जो आज भी अमर है।    राज कपूर ने शैलेन्द्र के विषय में सही लिखा है — ‘‘उन्होंने पैसों के लोभ में गीत कभी नहीं लिखे...जब तक उनके अपने अन्तर्भावों की गूँज नहीं उठती , तब तक वे नहीं लिखते थे।’

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                            ||  तीसरी कसम अर्थात् मारे गए शैलेन्द्र ||          पेज -1                                                                           ----भारत यायावर       हिन्दी सिनेमा को जिन कुछ गीतकारों ने गरिमा और गहराई प्रदान की है , उनमें शैलेन्द्र प्रथम स्थानीय हैं। उनका योग दान अविस्मरणीय है। उनके गीत आज भी ताज़ा और बेमिसाल हैं। समय की धूल भी उन्हें धूमिल नहीं कर पाई ।     जनकवि नागार्जुन ने शैलेन्द्र की स्मृति में एक कविता लिखी है — गीतों के जादूगर का मैं छन्दों से तर्पण करता हूँ .... सच बतलाऊँ तुम प्रतिभा के ज्योतिपुत्र थे , छाया क्या थी , भली-भांति देखा था मैंने , दिल ही दिल थे , काया क्या थी। ( नागार्जुन शैलेन्द्र की विशेषता बताते हुए कहते हैं कि तुम प्रतिभा के ज्योतिपुंज थे और तुम दिल ही दिन थे । तात्पर्य यह कि तुम बिल्कुल भावों से भरपूर थे। युग की अनुगुँजित पीड़ा ही घोर घनघटा-सी गहराई प्रिय भाई शैलेन्द्र , तुम्हारी पंक्ति-पंक्ति नभ में लहराई। तिकड़म अलग रही मुस्काती , ओह , तुम्हारे पास न आई , फिल्म जगत की जटिल विषमता , आखिर तुमको रास न आई। ओ जन म

Alvida aur salam | bharat yayavar |rahul raj renu| hindi poem |अलविदा और सलाम | भारत यायावर |राहुल राज रेणु | हिंदी कविता

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                                    ||अलविदा और सलाम ||                                                                ---- भारत यायावर :1999  अलविदा ! मेरे देश की महान गौरवशाली परंपरा सुख-समृद्धि मान-सम्मान नैतिकता-सच्चाई प्यार-सौहार्द-ईमानदारी अलविदा!                                   अलविदा बुद्ध                                  अलविदा कबीर                                  अलविदा गांधी                                  अलविदा साहस                                 अलविदा शौर्य                                 अलविदा देशभक्ति                                 अलविदा बन्धुत्व, बढ़ती आबादी बढ़ती बेरोजगारी भूख-विपन्नता महामारी सलाम !                                  भ्रष्टाचार-पतनशीलता                                   लूट बलात्कार                                    दंगे-मारकाट,   अन्याय-अनाचार पाप-दुराचार भोग-वासना स्वार्थ की साधना सलाम !                         हे भूमण्डलीकरण                         हे डंकन-गैट                         हे बहुराष्ट्रीय कं