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Teen maut || rahul raj renu ||तीन मौत || राहुल राज रेणु || part-1

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                                                                 -ःतीन मौतः-                                                                                                        -राहुल राज रेणु    रात का खाना खाने के बाद थोड़ी बहुत खाना बच जाती थी। उस खाने को सुलोचना बाहर बरामदा पर रख जाती थी।    “सुलोचना कटिहार के सबसे धनी लाला का दुलारी बेटी थी। सुलोचना के पिता जी इज्जतदार व्यक्ति थें।उनके घर में तीन ही आदमी का बसेरा रहता.....माँ-पिता जी और सुलोचना।सुलोचना का एक बड़ा भाई बैंगलोर में ईंजीनियर  की पढ़ाई कर रहा है।सुलोचना बी0एस0सी की छात्रा हैं।”   सोमवार की रात को सुलोचना खाना खाने के बाद बाहर बरामदे पर खाना कुत्तों को खाने रख गईं।सोने के कुछ देर बाद अचानक  उनको याद आई कि अँगुठी भी वह बाहर ही छोड़ गई हैं।उलटे पाँव वह वापस बाहर आने लगी ,उसने देखा कि एक आदमी काॅफी बुरी तरह से फटी-चिटी गंदी कपड़ा पहना हुआ ।सर की बड़ी-बड़ी भद्दी बाल,दाड़ी भी बड़ी पुरा गंदा दिख रहा था।सुलोचना काॅफी डर गई...वह व्यक्ति भी ठंड से सिकुड़ रहा था। ठंड से उनके हाथों से वह जुठा खाना खाया नही जा रहा था।सुलोचना भिखारी स

बात CM #नीतीश_कुमार और उनके #राजनीति_बिहार की BJP या RJD या पूरा JDU

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  राजनीतिक  पुरुष  सीएम  नीतीश कुमार             ....राहुल राज रेणु    नीतीश कुमार  को विकास पुरुष कहना यह कोई शंका या बनाई बात नही है  ,यह शत प्रतिशत सत्य है कि मैंने  जो अनुभव किया है, मैं जो देख रहा हूँ  , नीतीश कुमार  विकास पुरुष ही हैं  | विरासत में भले ही राजनीति  नहीं  मिली हो   लेकिन ये  बिहार की राजनीति को  सिंच कर  विरासत बनाये रखने के लिए  जोड़ और गुना भाग करते हैं |         वर्तमान समय में देश  की   सबसे लोकप्रिय  राजनीतिक पार्टी  दो ही है पहली BJP और दूसरी कॉंग्रेस | यही अगर क्षेत्र स्तरीय पर पार्टी की लोकप्रियता देखी जाय तो  BJP कॉंग्रेस आपस में प्रतिद्वंदी  नहीं है बल्कि ये दोनों पार्टियां क्षेत्रीय पार्टियों से संघर्षरत हैं |हाँ  , BJP और  Congress की  कुछ जगहों में बहुमत मे हैं,  ब्लकि  आधे से अधिक जगहों पर  बोलबाला अन्यों की  है |     भलें ही बीजेपी को 10 में 7 वोट ना  मिलती हो  लेकिन  10 में से 7 प्रशंसक  Bjp के ही हैं | बिहार के लिए देखा जाय तो श्री कुमार  हमेशा से बेहतर cm है  , बस  उसी 10 में से 7 व्यक्ति के कारण  इनकी प्रशंसा कम हो पाती  , राजनीति को लोग प्रतिद्व

वह पिस्तौल वाला लेखक- फणीश्वरनाथ रेणु | wah pistol wala lekhak - phanishwar nath renu |rahulrajrenu|राहुल राज रेणु |

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  वह पिस्तौल वाला लेखक- फणीश्वरनाथ रेणु --------------------------- गांवों की जीवन्तता के अद्भुत चितेरे हिंदी लेखक फणीश्वरनाथ रेणु की यह दुर्लभ तस्वीर 1951-52 में नेपाल में राणाशाही के विरुद्ध हुई क्रांति के दौर की है। नेपाल राष्ट्र को अपनी मौसी मां कहने वाले रेणु उस वक़्त उस क्रांति में अपने मित्रों (कोईराला बन्धु) का साथ देने पहुंच गए थे। उस क्रांति में रेणु को नेपाली रेडियो के संचालन की भूमिका दी गयी थी। यह सीधे सीधे बंदूक चलाने वाला काम नहीं था। मगर जब वे उस क्रांति में भाग लेने जा रहे थे तो कहा जाता है कि उनकी पत्नी लतिका रेणु ने उन्हें यह पिस्तौल भेंट की थी कि बुरे वक़्त में यह उनकी रक्षा करेगा।लेकिन ऐसा नहीं है,रेणु के व्यक्तिगत जीवन में उनके अनेक शत्रु थे,जो रेणु को परेशान करते थे और उनकी जान लेना चाहते थे।स्थिति को देखते हुए उनके परम मित्र राष्ट्र कवि दिनकर जी ने रेणु को सुझाव दिया कि तुम एक पिस्तौल आत्मरक्षार्थ ले लो.. दिनकर जी उन दिनों राज्यसभा के सदस्य थे और प्रधानमंत्री नेहरु जी के काफी प्रिय थे,तो उन्होंने रेणु की सिफारिश पिस्तौल के लाईसेंस के लिए नेहरु जी से किया और बात

phanishwar nath renu| shailendr| teesri kasam |bharat yayavar| rahul raj renu|page-8| फणीश्वर नाथ रेणु | शैलेन्द्र | तीसरी कसम अर्थात मारे गए शैलेन्द्र | भारत यायावर |राहुल राज रेणु |पेज -8

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                                ||   तीसरी कसम अर्थात् मारे गए शैलेन्द्र ||            पेज -8                                                                           ----भारत यायावर   1960 तक शैलेन्द्र अपने गीतों की लोकप्रियता के कारण हिन्दी फिल्म-जगत् में बड़े गीतकारों की श्रेणी में पहली पायदान पर पहुँच चुके थे। उन्होंने इतना नाम-यश अर्जित कर लिया था , जिसे बहुत कम कलाकार लम्बा जीवन जीकर भी नहीं पा सके। वे अब अपनी निर्धनता से भी मुक्त हो चुके थे। उन्होंने खार में अपना मकान भी बनवाया और अपनी पहली फिल्म ‘बरसात’ की स्मृति में नाम रखा — ‘रिमझिम’। अपने घर के पास ही उन्होंने एक छोटा-सा फ्लैट खरीदा था , जिसमें शाम को अपने मित्रों के साथ बैठक करते। 1959 ई० में बिमल राय प्रोडक्शन में ‘परख’ नामक फिल्म बन रही थी। शैलेन्द्र ‘परख’ के लिए गीतों के साथ-साथ संवाद भी लिख रहे थे। उस फिल्म से जुड़े नवेन्दु घोष , बासु भट्टाचार्य , बासु चटर्जी , बी०आर० इशारा आदि शाम को शैलेन्द्र के पास जुड़ते और गपशप होती। उस गपशप में फिल्मों के अलावा साहित्यिक चर्चा भी होती। उसी समय मोहन राकेश के सम्पादन में राजकमल

phanishwar nath renu| shailendr| teesri kasam |bharat yayavar| rahul raj renu|page-7| फणीश्वर नाथ रेणु | शैलेन्द्र | तीसरी कसम अर्थात मारे गए शैलेन्द्र | भारत यायावर |राहुल राज रेणु |पेज -7

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                                ||   तीसरी कसम अर्थात् मारे गए शैलेन्द्र ||           पेज -7                                                                           ----भारत यायावर   जो जिससे मिला सीखा हमने , गैरों को भी अपनाया हमने मतलब के लिए अन्धे बनकर रोटी को नहीं पूजा हमने अब हम तो क्या सारी दुनिया , सारी दुनिया से कहती है हम उस देश के वासी हैं जिस देश में गंगा बहती है ! ऋषिकेश मुखर्जी द्वारा निर्देशित फिल्म ‘आशिक’ ( 1962) में शैलेन्द्र का यह गीत — ‘‘तुम जो हमारे मीत न होते , गीत ये मेरे गीत न होते !’’ सर्वाधिक लोकप्रिय हुआ और मैं इसे आज भी गुनगुनाता रहता हूँ । ‘ बरसात’ से लेकर ‘संगम’ तक राज कपूर की सभी फिल्मों में शैलेन्द्र ने गीत लिखे। राज कपूर की टीम में गीतकार के रूप में शंकर शैलेन्द्र एवं हसरत जयपुरी , संगीतकार — शंकर एवं जयकिशन , पटकथा लेखक — ख्वाजा अहमद अब्बास , छायाकार — राधू कर्मकार , गायक — मुकेश और मन्ना डे , कला-निर्देशक — एच.आर. अचरेकर आदि महान् प्रतिभाशाली लोग थे। इन सभी के सामूहिक प्रभाव से राज कपूर का महिमामण्डित एवं लोकप्रिय छवि का निर्माण हुआ था। प

phanishwar nath renu| shailendr| teesri kasam |bharat yayavar| rahul raj renu|page-6| फणीश्वर नाथ रेणु | शैलेन्द्र | तीसरी कसम अर्थात मारे गए शैलेन्द्र | भारत यायावर |राहुल राज रेणु |पेज -6

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                                  ||  तीसरी कसम अर्थात् मारे गए शैलेन्द्र ||          पेज -6                                                                            ----भारत यायावर       ‘‘ ज़िन्दगी    ख़्बाव है    ख़्बाव में झूठ क्या !    और भला सच है क्या !’’        यह गीत अपने ढांचे में नई कविता की तरह है। ‘अनाड़ी’ फिल्म का शीर्षक-गीत — ‘‘सब कुछ सीखा हमने , ना सीखी होशियारी , सच है दुनिया वालो कि हम हैं अनाड़ी !’’ जब मुकेश की आवाज में स्वर-बद्ध हुआ तो राज कपूर आधी रात को शैलेन्द्र के घर गए एवं उन्हें जगाकर गले से लगा लिया और कहा —‘‘शैलेन्द्र ! मेरे दोस्त! गाना सुनकर रहा नहीं गया। क्या गीत लिखा है ?’’ उसी फिल्म में जीवन के अपने उद्देश्य को स्पष्ट करती शैलेन्द्र की ये पंक्तियां हर संवेदनशील मनुष्य को प्रभावित कर लेती हैं — किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार किसी का दर्द मिल सके तो ले उधार किसी के वास्ते हो तेरे दिल में प्यार जीना इसी का नाम है ! रिश्ता दिल से दिल के ऐतबार का ज़िन्दा है हमीं से नाम प्यार का कि मरके भी किसी को याद आएँगे किसी के आँसुओं में मुस्कुराएँगे क

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                                ||  तीसरी कसम अर्थात् मारे गए शैलेन्द्र ||          पेज -5                                                                           ----भारत यायावर              फिर शैलेन्द्र ने राज कपूर की ‘बरसात’ फिल्म के लिए उसका शीर्षक गीत लिखा — ‘‘बरसात में हमसे मिले तुम सजन , तुमसे मिले हम , बरसात में।’’ यह 1949 की सबसे ज्यादा व्यावसायिक लोकप्रियता ग्रहण करने वाली फिल्म थी एवं शैलेन्द्र का लिखा यह पहला फिल्मी गीत इतना लोकप्रिय हुआ कि शैलेन्द्र की मांग फिल्मी दुनिया में अचानक बढ़ गई। ‘आग’ फिल्म के बाद राज कपूर की फिल्मों में सिर्फ शैलेन्द्र एवं हसरत के ही गीत हुआ करते थे , उसमें भी ज्यादातर शैलेन्द्र के ही। फिर राज कपूर की ‘आवारा’ 1951 ई. में प्रदर्शित हुई. इसका शीर्षक गीत —         ‘‘आवारा हूं या गर्दिश में हूं आसमान का तारा हूं’’ ने भी लोकप्रियता का    कीर्तिमान स्थापित किया। ‘श्री 420’ का शीर्षक-गीत — ‘‘मेरा जूता है जापानी , ये पतलून इंगलिस्तानी , सर पे लाल टोपी रूसी , फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी’’ तो कालातीत हो गया। राज कपूर की जिन अन्य फिल्मों में शैलेन्द्